BENEATH THE SURFACE BY Maulik Buch -शिवसेना के पीछे खुद शंकर हैं: अविमुक्तेश्वरानंद ने जोड़ी राज और उद्धव की डोर
मुंबई, 20 जुलाई 2025: महाराष्ट्र की सियासत में एक नया अध्याय शुरू हो चुका है, जहां शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने शिवसेना के दो धड़ों—राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे—को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है। इस एकता ने न केवल शिवसेना को नई ताकत दी है, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की मराठी अस्मिता की विचारधारा को भी पुनर्जनन प्रदान किया है।
मराठी अस्मिता का आंदोलन और विवाद
बालासाहेब ठाकरे ने मराठी अस्मिता को शिवसेना का मूल मंत्र बनाया था। अब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने इस विचारधारा को फिर से जीवित करते हुए एक मंच से ऐलान किया कि वे इसके लिए "गुंडे" बनने को तैयार हैं। इस बयान के बाद मुंबई में गैर-मराठी व्यापारियों पर हमले की घटनाएं सामने आईं, जिससे शहर में तनाव का माहौल बन गया। खासकर मुंबई में रहने वाले गुजराती समुदाय में डर और असुरक्षा की भावना फैल गई। इन घटनाओं ने गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की छवि को नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि गुजराती समुदाय भाजपा का मजबूत समर्थक आधार रहा है।
फडणवीस का नमस्कार और शिवसेना की विरासत की वापसी
जिस देवेंद्र फडणवीस ने कभी शिवसेना को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उन्हें अब उद्धव ठाकरे के साथ विशेष बैठक करनी पड़ी। सूत्रों के अनुसार, फडणवीस ने उद्धव को नमस्कार कर सुलह का रास्ता अपनाया। यह कदम न केवल शिवसेना को एकजुट करने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत, पार्टी का धनुष-बाण चिह्न और उनकी विचारधारा को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में वापस लाने का एक बड़ा कदम है। इस सुलह को गुजरात में भाजपा की खराब होती छवि को सुधारने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
आंदोलन का अंत और संभावित गठबंधन
जैसे ही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) को बालासाहेब की विरासत और पार्टी का मूल चिह्न वापस मिलेगा, माना जा रहा है कि गैर-मराठी समुदायों के खिलाफ चल रहा आंदोलन थम जाएगा। इसके साथ ही, महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) और भाजपा के बीच एक संयुक्त सरकार बनने की संभावना भी प्रबल हो रही है। यह गठबंधन न केवल महाराष्ट्र की सियासत को स्थिरता दे सकता है, बल्कि शिवसेना को उसका खोया हुआ गौरव भी वापस दिला सकता है।
धर्म और सियासत का संगम
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का इस एकता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन ने शिवसेना को नई दिशा दी है। उनका कहना है कि जब धर्म सियासत में प्रवेश करता है, तो बड़े से बड़ा नेतृत्व भी कमजोर पड़ सकता है। कुछ लोग इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव में कमी के संकेत के रूप में देख रहे हैं। शंकराचार्य की यह भूमिका न केवल शिवसेना को मजबूती दे रही है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में धर्म और संस्कृति के महत्व को भी रेखांकित कर रही है।
शिवसेना का यह नया उभार और मराठी अस्मिता का आंदोलन महाराष्ट्र की सियासत को नया रंग दे सकता है। उद्धव और राज की एकता, शंकराचार्य का आशीर्वाद और बालासाहेब की विरासत की वापसी क्या शिवसेना को उसका पुराना गौरव वापस दिलाएगी? साथ ही, भाजपा के साथ संभावित गठबंधन क्या महाराष्ट्र में स्थिरता लाएगा? ये सवाल अभी अनुत्तरित हैं, लेकिन इतना तय है कि "हर हर महादेव" का नारा एक बार फिर महाराष्ट्र की सियासत में गूंजने को तैयार है।
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