Delhi Column by Maulik Buch: दिल्ली का इतिहास- महाभारत से भारत की स्वतंत्रता तक का सफरनामा



दिल्ली, भारत की राजधानी, एक ऐसा शहर है जिसका इतिहास हजारों वर्षों में फैला हुआ है। यह न केवल एक भौगोलिक क्षेत्र है, बल्कि सभ्यताओं, संस्कृतियों और साम्राज्यों का संगम स्थल भी है। दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से लेकर भारत की स्वतंत्रता तक एक रोचक और समृद्ध यात्रा है, जिसमें विभिन्न युगों, शासकों और घटनाओं ने इस शहर को आकार दिया। आइए, इस ऐतिहासिक यात्रा को विस्तार से देखें।

महाभारत काल और प्राचीन दिल्ली
दिल्ली का सबसे प्राचीन उल्लेख महाभारत के युग से मिलता है, जब इसे इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। महाभारत के अनुसार, इंद्रप्रस्थ पांडवों की राजधानी थी, जिसे उन्होंने यमुना नदी के किनारे स्थापित किया था। यह शहर पांडवों के शासनकाल में समृद्धि और वैभव का प्रतीक था। पुरातात्विक साक्ष्य, जैसे कि पुराना किला क्षेत्र में पाए गए अवशेष, इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में मानव बस्तियां थीं। हालांकि, महाभारत के बाद इंद्रप्रस्थ का महत्व धीरे-धीरे कम हुआ, और यह क्षेत्र विभिन्न छोटे-मोटे शासकों के अधीन रहा।

दिल्ली सल्तनत का उदय
मध्यकाल में दिल्ली का महत्व फिर से उभरा, जब इसे दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनाया गया। 12वीं सदी के अंत में, 1192 में तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद, मुहम्मद गोरी ने दिल्ली पर कब्जा किया। उनके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 में दिल्ली सल्तनत की नींव रखी और गुलाम वंश की शुरुआत की। इस काल में दिल्ली ने कई ऐतिहासिक स्मारकों को जन्म दिया, जैसे कि कुतुब मीनार, जो कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाना शुरू किया था।

दिल्ली सल्तनत के तहत, दिल्ली पांच प्रमुख वंशों - गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश - का केंद्र रही। प्रत्येक वंश ने दिल्ली की संस्कृति और वास्तुकला को समृद्ध किया। खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी ने सल्तनत का विस्तार किया और सिरी किले की स्थापना की। तुगलक वंश के फिरोज शाह तुगलक ने फिरोजाबाद की स्थापना की, जो दिल्ली का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा बना। इस काल में दिल्ली न केवल राजनीतिक केंद्र थी, बल्कि व्यापार, कला और संस्कृति का भी प्रमुख गढ़ बन गई।

मुगल साम्राज्य और दिल्ली का स्वर्ण युग
16वीं सदी में मुगल साम्राज्य के उदय के साथ दिल्ली ने अपने इतिहास का स्वर्ण युग देखा। 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की नींव रखी। हालांकि, बाबर ने दिल्ली को अपनी राजधानी नहीं बनाया, लेकिन उनके पोते अकबर और बाद में शाहजहां ने दिल्ली को फिर से गौरव प्रदान किया।

शाहजहां ने 1638 में शाहजहानाबाद (वर्तमान पुरानी दिल्ली) की स्थापना की और लाल किला और जामा मस्जिद जैसे ऐतिहासिक स्मारकों का निर्माण करवाया। इस काल में दिल्ली मुगल साम्राज्य का सांस्कृतिक और प्रशासनिक केंद्र बन गई। ताजमहल के निर्माता शाहजहां ने दिल्ली को एक भव्य शहर के रूप में स्थापित किया, जहां व्यापार, कला और वास्तुकला अपने चरम पर थी। हालांकि, औरंगजेब के शासनकाल के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा, और दिल्ली पर कई आक्रमण हुए, जैसे कि 1739 में नादिर शाह का आक्रमण, जिसने शहर को भारी नुकसान पहुंचाया।

मराठों और सिखों का प्रभाव
18वीं सदी में मुगल साम्राज्य के पतन के साथ दिल्ली पर मराठों और सिखों का प्रभाव बढ़ा। मराठों ने 1757 में दिल्ली पर कब्जा किया, लेकिन 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में उनकी हार ने उनके प्रभाव को कम कर दिया। इस बीच, सिख मिसलों ने भी दिल्ली पर दबदबा बनाया। इस काल में दिल्ली अस्थिरता का शिकार रही, क्योंकि विभिन्न शक्तियां इस पर नियंत्रण के लिए संघर्ष कर रही थीं।

ब्रिटिश शासन और दिल्ली का परिवर्तन
1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और इसे अपने प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम दिल्ली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस विद्रोह में दिल्ली को विद्रोहियों ने अपनी राजधानी घोषित किया और बहादुर शाह जफर को उनका प्रतीकात्मक सम्राट बनाया। हालांकि, ब्रिटिश सेना ने विद्रोह को कुचल दिया और दिल्ली को भारी नुकसान हुआ।

1857 के बाद, ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली को औपचारिक रूप से अपने नियंत्रण में लिया और 1911 में राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने नई दिल्ली की योजना बनाई, जो एक आधुनिक और व्यवस्थित शहर के रूप में उभरी। इस दौरान राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और इंडिया गेट जैसे प्रतिष्ठित स्मारक बनाए गए।

स्वतंत्रता आंदोलन और दिल्ली
20वीं सदी में दिल्ली स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र बन गई। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने दिल्ली को अपने आंदोलनों का आधार बनाया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और अन्य विरोध प्रदर्शनों में दिल्ली ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

15 अगस्त 1947 को, जब भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, दिल्ली स्वतंत्र भारत की राजधानी बनी। लाल किले से पंडित जवाहरलाल नेहरू का ऐतिहासिक भाषण "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" आज भी स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में गूंजता है।

निष्कर्ष
दिल्ली का इतिहास महाभारत के इंद्रप्रस्थ से लेकर आधुनिक भारत की राजधानी तक एक लंबी और गौरवशाली यात्रा है। इस शहर ने पांडवों, सुल्तानों, मुगलों, मराठों, सिखों और ब्रिटिश शासकों के उतार-चढ़ाव देखे। प्रत्येक युग ने दिल्ली की संस्कृति, वास्तुकला और पहचान को समृद्ध किया। आज, दिल्ली न केवल भारत का राजनीतिक केंद्र है, बल्कि एक ऐसी जीवंत नगरी है, जो अपने ऐतिहासिक गौरव और आधुनिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।

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