अगर इस स्टार को क्रिकेट के मैदान में चोट न लगी होती, तो शायद वे बॉलीवुड में न होते और दर्शक उन यादगार गानों और फिल्मों से वंचित रह जाते, जिनके लिए उन्हें दुनियाभर में सराहा गया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में फिल्मों के लिए गाने लिखे, फिर गुलजार के साथ मिलकर उनके गानों को संगीत दिया। जब निर्देशन में उतरे, तो एक से बढ़कर एक फिल्में लिखीं और डायरेक्ट कीं। वे 9 बार नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं।
फिल्म इंडस्ट्री में वर्सेटाइल कलाकारों की बात हो, तो एक फिल्म डायरेक्टर का नाम सबसे ऊपर आता है। वे किसी परिचय के मोहताज नहीं। उन्होंने संगीतकार, लेखक, निर्देशक और निर्माता के रूप में हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं। हालांकि, कम लोग जानते हैं कि वे मनोरंजन जगत में नहीं, बल्कि खेल में करियर बनाना चाहते थे। वे उत्तर प्रदेश की अंडर-19 क्रिकेट टीम का हिस्सा थे। (फोटो साभार: Instagram@vishalrbhardwaj)
डायरेक्टर क्रिकेट के मैदान में बल्ला लहराना चाहते थे, लेकिन किस्मत उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में ले आई। हम बात कर रहे हैं विशाल भारद्वाज की। उनका जन्म 4 अगस्त 1965 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ। उनके पिता हिंदी फिल्मों के लिए कविताएं और गीत लिखते थे। विशाल का बचपन नजीबाबाद और मेरठ में बीता। क्रिकेट के प्रति उनका जुनून इतना था कि वे उत्तर प्रदेश की अंडर-19 टीम के लिए खेल चुके थे। लेकिन एक प्रैक्टिस सेशन में अंगूठे की चोट ने उनके क्रिकेट करियर पर रोक लगा दी।
विशाल ने 17 साल की उम्र में एक गीत बनाया, जिसे उनके पिता ने संगीतकार उषा खन्ना को सुनवाया। यह गीत 1985 में आई फिल्म 'यार कसम' में इस्तेमाल हुआ, जिसने उनके संगीत करियर की नींव रखी। दिल्ली के हिंदू कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात रेखा भारद्वाज से हुई, जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। दोनों का एक बेटा है- आसमान भारद्वाज, जो एक उभरता हुआ निर्देशक है।
विशाल ने अपने करियर की शुरुआत 1995 में फिल्म 'अभय: द फीयरलेस' से बतौर संगीतकार की। लेकिन गुलजार की फिल्म 'माचिस' ने उन्हें पहचान दिलाई, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर आरडी बर्मन अवॉर्ड मिला। उन्होंने 'सत्या' और 'गॉडमदर' में संगीत देकर अपने करियर को रफ्तार दी। 'गॉडमदर' के लिए उन्हें बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला। 2002 में विशाल ने बच्चों की फिल्म 'मकड़ी' से निर्देशन शुरू किया, जिसे समीक्षकों ने खूब सराहा। शबाना आजमी स्टारर यह फिल्म सफल रही।
विशाल की प्रतिभा 2003 में 'मकबूल', 2006 में 'ओमकारा' और 2014 में 'हैदर' में खूब दिखी। ये सभी फिल्में शेक्सपियर के नाटकों पर आधारित हैं। इन फिल्मों ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। 'हैदर' ने पांच नेशनल अवॉर्ड जीते, हालांकि फिल्म को लेकर विवाद भी हुआ, लेकिन यह उनकी बेहतरीन फिल्मों में शुमार है। 2009 में 'कमीने' और 2011 में '7 खून माफ' ने उनकी अनूठी कहानी कहने की शैली को दर्शकों ने सराहा।
विशाल ने एक इंटरव्यू में बताया कि आमिर खान ने उन्हें शेक्सपियर के नाटक 'ओथेलो' पर फिल्म 'ओमकारा' बनाने के लिए प्रेरित किया। आमिर खुद इस फिल्म में 'लंगड़ा त्यागी' का रोल करना चाहते थे, लेकिन कुछ कारणों से वे इसका हिस्सा नहीं बन पाए।
विशाल ने 2013 में 'मटरू की बिजली का मंडोला' और 2017 में 'रंगून' जैसी फिल्मों से अपनी रचनात्मकता को और उभारा। उन्होंने 'इश्किया', 'डेढ़ इश्किया' और 'तलवार' जैसी फिल्मों का निर्माण और लेखन भी किया। गुलजार के साथ उनकी जोड़ी ने 'दिल तो बच्चा है जी' जैसे कई यादगार गीत दिए। (फोटो साभार: Instagram@vishalrbhardwaj)
विशाल को 9 नेशनल अवॉर्ड और एक फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुके हैं। आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी फिल्म 'मकड़ी' को शिकागो फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का पुरस्कार मिला, जबकि 'ओमकारा' और 'हैदर' ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब तारीफ बटोरी।
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